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ये तीर अपने निशाने नहीं चूकते

जैसे एक प्रेमी अपनी प्रेमिका से वादे करता है उसी तरह गायक और कवि बाबासाहब को उनके सपनों का जहां देने का वादा करते हैं, जबकि उनके ऊपर व्हाट्स एप्प मैसेज समाज विज्ञानियों के मनोरंजन की चीज हो गए हैं।

भीमा भीम भीमा भीम जय जय भीमा....जय भीम जय भीम जय भीमा...

कोरस के सहारे ये आवाज़ जैसे ज़ोर पकड़ती है, बैकग्राउंड म्यूज़िक भी उतना ही जोशीला हो जाता है। गायक एस एस आज़ाद ने इस गाने को डीजे संगीत के पैटर्न पर सेट किया है और इसके बीट झूमने पर मजबूर कर देते हैं। आपको पता ही नहीं चलेगा कि कब आप मूर्तियों वाले अंबेडकर को देखते देखते एक निराकार अंबेडकर को महसूस करने लगते हैं। उनसे प्यार करने लगते हैं और उनके प्यार में फ़ना होने लगते हैं। इन गानों में एक पल ऐसा आता है जब गायक आज़ाद ठीक नुसरत फ़तेह अली ख़ान साहब के अल्ला हू की तरह अपने ख़ुदा के इश्क में ले जाते हैं। 

“तोड़ जज़ीरों को आज़ाद बन जाएंगे हम
अब जय भीम जय भीम जय भीम का....नाहरा लगायेंगा हम। “

गाने की शैली में नारा ‘नाहरा’ हो गया है। सूफ़ी गायन शैली में बंदगी का मकसद है आत्मसमपर्ण। तमाम बंदिशों को तोड़े बग़ैर बंदगी पूरी नहीं होती है। वही भाव आज़ाद के गने में दिखता है। गायक अपने ख़ुदा से इश्क़ करने लगता है और इश्क़ को ही इबादत कहने लगता है। आज़ाद अपने गीतों में बाबा साहब को कई तरह से पुकारते हैं। डाक्टर भीम राव अंबेडकर, डाक्टर बाबा साहब अंबेडकर, भीम राव से भीम, भीम से भीमा। उन्हें पुकारने की औपचारिकता कब अनौपचारिकता में बदल जाती है पता नहीं चलता। आज़ाद का ही एक और गाना है जिसके बोल हैं

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“हम तीर वो ऐसे हैं, लगते जो निशाने हैं, 
पंगा हमसे मत लेना, पंगा हमसे मत लेना
हम भीम दीवाने है। 
जो शमा पे सड़ जाए
हम वो परवाने हैं
पंगा हमसे मत लेना हम भीम दीवाने हैं।“

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इन गीतों में जो शब्द हैं वो भले ही उर्दू या हिन्दवी या रेख़्ता की नफ़ासत वाली परंपरा से नहीं आते हैं मगर उनके भाव वैसे ही हैं। ‘जो शमा पे सड़ जाए’, ये लाइन उर्दू का कोई गीतकार नहीं लिखेगा। आप देखिये कि दलितों की कल्पना में शमा की जगह क्या होती है और वो कैसी होती है। उसके पास मंडराने और उससे जल जाने के भाव के लिए कैसे शब्द है।

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मीरा और औलिया की परंपरा में ये नई सूफी परंपरा है जिसकी तरफ संगीतकारों का ध्यान गया न ही संगीत के अध्यापकों का। डाक्टर अंबेडकर दलितों के सिर्फ राजनीतिक प्रतीक नहीं हैं। भीम गीतों में आपको निर्गुण और सगुण भक्ति दोनों ही परंपरा मिलेगी। इन पर सूफी संगीत की कव्वाली परंपरा से लेकर डीजे संगीतों का खूब असर है। 

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दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में बोलते हुए मैं ही कह गया कि दलितों के पास डाक्टर अंबेडकर के अलावा और क्या है। बाबा साहब ही उनके लिए चांद हैं। चांदनी रात हैं। जब मैं इस लेख के लिए व्हाट्स अप पर भेजे गए भीम गीतों को सुनने लगा तो दंग रह गया। इन गीतों में बाबा साहब महबूब भी हैं। ख़्वाब भी हैं। हसरत हैं। उन्हें पाने की, उनकी बातों को छू लेने की, उनके सपनों को ज़मीन पर उतार देने की दीवानगी भी है। आम जीवन में आपको ये दीवानगी हासिल करने के लिए फिल्म स्टार होना पड़ता है, एक ओवर में छत्तीस रन बनाने होते हैं। आज की पीढ़ी को सोचना चाहिए कि डाक्टर अंबेडकर ने ऐसा क्या किया कि वे अपने समाज के लिए सुपर स्टार हैं। मेगा स्टार हैं।

“मोहब्बत भी भीम से, काम भी भीम से, नाम भी भीम से, ख़्याल भी भीम से, यारों यू कहों की अपनी तो सांसे भी भीम से।  “

राजनीति में नायक पूजा के ख़तरों के प्रति चेतावनी देने वाले डाक्टर अंबेडकर ने भी नहीं सोचा होगा कि वे गीत संगीत में इस तरह ढल जायेंगे जहां उनकी बंदगी की जाएगी। अंबेडकर खुद कबीर और अभंग परंपरा में पले बढ़े थे मगर उन्होंने इन सबको त्याग दिया। जो वो जानते थे उससे बग़ावत की और नए को अपनाया। बौद्ध धर्म का रास्ता ही क्यों चुना यह भी किसी को सोचना चाहिए।

गांधी को लेकर बहुत गीत मिलेंगे मगर डाक्टर अंबेडकर पर लिखे गए भीम गीत काफी अलग हैं। भीम गीत पेश करने वाले डीजे कलाकारों की खूब धूम होती है।  ये गीत उन्हें आज भी जात पात की क्रूर हकीकत से उस दुनिया में ले जाते हैं जो एक दिन बाबा साहब के बताये रास्ते पर बन कर रहेगी। ये दीवाने अपने महबूब से वादा करते हैं कि हम वो दुनिया बना देंगे।

मीडिया में दलित नहीं हैं और दलितों का कोई मीडिया नहीं है। पहले वाली हालत तो नहीं बदली लेकिन दूसरी वाली हालत बदल गई है. आज ट्वीटर पर कई दलित समूह आ गए हैं। दलित कैमरा (@Dalitcamera), दलित दिवा( @Dalitdiva ), अंबेडकर कारवां (@Ambedkarcaravan) । ट्वीटर पर दलितों की उपस्थिति बहुत कम है इसलिए वहां इन दलित हैंडल के फोलोअर दस हज़ार भी नहीं हैं। सोशल मीडिया के इस दौर में दलितों का अगर कोई अपना मीडिया है तो वह है व्हाट्स अप ग्रुप। अंबेडकर ग्रुप के नाम से अनगिनत व्हाट्स अप ग्रुप चलते हैं।

देश के कई हिस्सों में अप्रैल का महीना अंबेडकर माह के रूप में मनाया जा रहा है। हापुड़ से लेकर आगरा और यूपी के गांव गांव में डाक्टर अंबेडकर के लिए दौड़ का आयोजन हो रहा है। हज़ारों की संख्या में लड़के लड़कियाँ इन दौड़ में हिस्सा ले रहे हैं। कहीं से निबंध प्रतियोगिता होने की सूचना आती है तो कहीं मूर्तियों के गोद लेने का एलान होता है। व्हाट्स ग्रुप में अंबेडकर जयंती इस तरह से मन रही है जैसे होली और दीवाली । होली दीवाली तो एक दिन मनाई जाती है लेकिन अंबेडकर जयंती मार्च से ही शुरू हो चुकी है। 14 अप्रैल तो उसकी एक मंज़िल भर होगी। 

व्हाट्स अप पर बने अंबेडकर ग्रुप के तमाम मैसेज अपने आप में एक सामाजिक राजनीतिक दस्तावेज़ हैं। कोई बता रहा है कि कैसे बच्चों को याद दिलायें कि बाबा साहब की वजह से आज वो स्कूल जा रहा है। बाबा साहब की वजह से आज उसके तन पर कपड़े हैं। इन संदेशों में मिशन शब्द बार बार आता है। बाबा साहब के मिशन को पूरा करना है। उनका मिशन अधूरा है। एक कविता आई है जिसके बोल हैं

थक गए पैर लेकिन,
हिम्मत नहीँ हारी,
जज्बा हैं जीने का,
सफर हैं जारी,

चलना हैं बहुत दूर,
राह अभी बाक़ी हैं।
मत रुकना भीम के बंदे तु
बाबा का सपना बाकी है !"

जैसे गीतों में भीम राव भीम होते हुए भीमा हो जाते हैं वैसे ही एक कविता में मुझे 'दलिता' शब्द मिला। दलित तो हमने आपने सुना होगा लेकिन दलित से दलिता अभिव्यक्ति के नए नए मायनों का दरवाज़ा खोलती है।

ऐ तेरा करम हे बाबा,
जो तुम न होते ऐ देश में दलीता न होता
हम हैं तेरे सपूत बाबा
जो तू तो न होता तो इस देश में 
दलीता न होता

गुजरात के अहमदाबाद से भूपत सिंह झाला ने यह कविता लिखकर भेजी है। शब्दावली और शैली किसी अनुभवी कवि की तरह नहीं है लेकिन अंबेडकर के प्रति प्रेम इन सबको कवि बना रहा है। आम बातचीत में बाबा साहब को ‘आप’ कहककर बुलाते हैं लेकिन इन गीतों कविताओं में वे ‘तू’ भी हो जाते हैं, तुम भी हो जाते हैं। दलितों के लिए चाँद से लेकर पहाड़ों की ख़ूबसूरती बाबा साहब के आने के बाद से है । पहले जैसे चांद ही न था । कैसे हो सकता था । जिन्हें चलने के लिए रास्ता न दिया गया हो वो चाँद को देखते भी तो किसके लिए ।

जिन्दगी में उजाला बाबा साहेब से है,
वरना ये चाँद तो पहले भी था। 

जिन्दगी में ऊर्जा बाबा साहेब से है,
वरना ये सूरज तो पहले भी था।

जिन्दगी में आधार बाबा साहेब से है,
वरना ये धरती तो पहले भी थी ।

जिन्दगी में आसरा बाबा साहेब से है,
वरना ये आकाश तो पहले भी था ।

एक व्हाट्स अप ग्रुप में लखनऊ के पास फरीदीपुर बग्गा से अंबेडकर जयंती पर होने वाले एक आयोजन की सूचना आई है। जिसमें कई तरह की सूचनाएं हैं। धम्म उपदेश होगा, मूर्तियों का जीर्णोद्धार किया जाएगा, शोभा यात्रा निकाली जाएगी, भोजन की भी व्यवस्था है और पूरी रात भारत के सुपर स्टार भीम मिशन कलाकारों की गीत और नाट्य प्रस्तुति होगी। 

 इन संदशों में जातिवाद पर गहरी चोट होती है। पढ़कर पता चलता है कि जातिवाद आज भी आबादी के बड़े हिस्से को किस तरह सता रहा है। उसकी क्रूर यातना के प्रतिकार में कविता निकलती है तो कभी आक्रोश भरे गीत। जातिवाद को लेकर खूब सारे लतीफे भी चलते रहते हैं। एक लतीफा है कि बुद्ध को मानने वाले जापान में, 603 किमी प्रति घंटे की रफ्तार वाली ट्रेन के बाद 5 जी की टेस्टिंग शुरू हो चुकी है, और इंडिया में भक्त लोग, व्हाट्स अप पर 11 लोगों को ऊं नम शिवाय भेकर फ्री बैलेंस और चमत्कार की उम्मीद कर रहे हैं!

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