Culture & Society

आई लव यू सूपनखा

...मगर तुम्हारी हिम्मत की मिसालें देने के लिए भाषा में किसी सौंदर्य की कतई ज़रूरत नहीं...

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Poem (Representative image)
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मिथिहास की साज़िश हो या कलम की लापरवाही

सच यही है कि मुझ जैसे अदने प्रेमी को तुम्हारा ठीक-ठीक नाम तक मालूम नहीं

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तुम सूपनखा हो, शूर्पणखा या शूपनखा

मगर तुम्हारी हिम्मत की मिसालें देने के लिए भाषा में किसी सौंदर्य की कतई ज़रूरत नहीं

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तुम्हारे प्रणय निवेदन के साहस का मुरीद है वह क्षण

जब तुमने अपने दिल की बात कह दी थी

यह जानते हुए भी कि इसके माने जाने की संभावना बहुत कम है

तुम्हारी ज़रूरत आज भी पड़ती है

कहीं कोई सांवली लड़की मुट्ठी में निचोड़ कर अपना दिल

आइब्रो बनवाने चली जाती है घर के पास वाले ब्यूटी पार्लर

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भाभी से पहनना सीख़ती है साड़ी

बैठक में चाय ले जाते हुए जिनके पांव कांपते हैं

साड़ियां पहनाती भाभियों के हाथ भी ठिठकते हैं कुछ याद करके

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मगर वह अगले ही पल मुस्करा कर कहती हैं, ``तेरे तो पांव ही आज नशे में उठ रहे हैं बिन्नो´´ और ठठा कर हंस देती हैं

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तुम पर नाज़ करता है वह भविष्य

जिसका बीज सबसे उर्वर हो कर

हवा में से जादू के ज़ोर से प्रेम पैदा करेगा

तुम्हारी बलैयां लेती है वह मिट्टी जहां तुमने प्रेम बोया था

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तुम्हें मिसाल मानती हैं वह लड़कियां

जिनके घरों में कई-कई राम हैं

जो अब उपहास भी नहीं करते उनकी ऐसी भावनों का

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वहां अब सीधे मामला जड़ से खत्म कर देने की होड़ मची है


बहुत सारे छोटे शहरों के बहुत सारे छोटे घरों के बहुत सारी छोटी खिड़कियों से

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बाहर की सड़क पर झांकती हैं बहुत सारी छोटी लड़कियां

जो सूपनखा बनना चाहती हैं और कह देना चाहती हैं अपने मन की बात उसे लड़के से

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जो सड़क के उस पार की पान की दुकान पर दिन भर खड़ा

टकटकी लगाए रख़ता है एक खिड़की की तरफ


बात उनके चुनाव की कतई नहीं

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जो सही भी हो सकता है और गलत भी

बात तो अपने दिल की बात सुनने और उसे मानने का साहस करने में है न सूपनखा

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तुम दे दो उन्हें अपने जैसा साहस

सभी राम जैसे अहंकारी और लक्षमण जैसे क्रूर नहीं होते


तुम्हें प्रेम करना आता था सूपनखा और उससे भी अधिक उसका इज़हार करना

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तुम कौन थी और किससे संबंध रखती थी

यह सवाल आज भी मायने तो रखता ही है

तुम्हारी अपनी एक मर्ज़ी थी सूपनखा और तुम्हें इस पर चलने का साहस था

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चीज़ें आज भी नहीं बदलीं जान

तुम्हारे हिम्मत की एकाध बूंद दिखाने वाली लड़कियों को आज भी राक्षसी कहा जाता है

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और नाक-कान काटना तो बहुत छोटी सी सज़ा है


तुम्हारा प्रणय निवेदन आज भी गूंजता है मेरे कानों में

चीज़ें बदल गईं हैं लेकिन हिम्मत को आज भी हिम्मत ही कहते हैं

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और जीने के लिए दिल का धड़कना उतना ही ज़रूरी है

मैं अपने जीने की सूरत चुनता हूं

तुमसे अपनी बात कहता हूं

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आई लव यू सूपनखा!


- विमल चन्द्र पाण्डेय

E-30, सेक्टर- B

सैनिक विहार, नंदा नगर, कूड़ा घाट

गोरखपुर – 273008

(U. P.)

(Born on 20th October 1981 and brought up in Varanasi, Vimal Chandra Pandey got Jnanpith Navlekhan Puraskar for his first story collection 'DAR'. After his first book, he has now four short story collections 'Mastoolon Ke Irdgird', 'Uttar Pradesh Ki Khidki', 'Meri Priya Kahaniyan' from different publications. He got published his first novel 'Bhale Dinon Ki Baat Thi' and a best-selling memoir 'Ee Ilahabbad Hai Bhaiya' a couple of years back. His debut direction film 'The Holy Fish' got released on OTT after travelling and winning accolades in film festivals worldwide. His second novel 'Lahartara' and the second feature film 'Dhatura' is planned to release soon. He lives in Mumbai and works on different aspects of films and scripts. He can be contacted at vimalchandrapandey1981@gmail.com)

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